Holika: उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से ही होलिका दहन की शुरुआत हुई थी। आज भी यहां वह प्रहलाद कुंड मौजूद है, जहां होलिका हरदोई के राजा हिरण्यकशिपु के पुत्र विष्णु भक्त प्रह्लाद को भस्म करने के लिए उसे लेकर आग में बैठी थी। लेकिन भगवान विष्णु की भक्ति में डूबे प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका जलकर भस्म हो गयी, तब से होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई।
Holika: हरि द्रोही था हिरण्यकश्यप वाला हरदोई
Holika: उत्तर प्रदेश के हरदोई से ही होला दहन की शुरुआत हुई। पौराणिक कथाओं के अनुसार कभी हरदोई का नाम हरि द्रोही था और यहां का राजा हिरण्यकशिपु था, जो भगवान विष्णु से बैर रखता था। हिरण्यकशिपु का बेटा प्रह्लाद हुआ, जो विष्णु जी का भक्त था। हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जलाने का प्रयास किया, जिसे आग में ना जलने का वरदान था। लेकिन विष्णु भगवान की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका आग में भस्म हो गयी। तब से होलिका दहन की शुरुआत हुई।
Holika: पौराणिक कथाओं के अनुसार हरदोई में भगवान विष्णु ने दो बार अवतार लिया, पहला अवतार नरसिंह रूप में और दूसरा अवतार वामन रूप में लिया। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष ऋषि कश्यप के पुत्र थे और उसकी माता का नाम अदिती था। इनके दो पुत्र हुए तो इनकी माता अदिती ने भगवान से पूछा था कि उनके पुत्र कैसे होंगे, तब उन्होंने कहा था कि पहले तो यह भगवान को पूजेंगे लेकिन बाद में दोनों बैर रखेंगे और वैसा ही हुआ। हिरण्यकशिपु पहले भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। लेकिन जब उसका भाई हिरण्याक्ष भगवान विष्णु के हाथों मारा गया। तब से वह भगवान विष्णु से बैर मानने लगा और उनसे बदला लेने की कोशिश करने लगा।
Holika: भगवान विष्णु की माया के अनुसार ही हिरण्यकशिपु के घर भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ। प्रहलाद होश संभालते ही भगवान विष्णु की भक्ती में लीन रहने लगा। यह देखकर हिरण्यकशिपु ने उसको भगवान विष्णु जी की भक्ती करने को मना किया लेकिन प्रहलाद लगातार भक्ती में लीन रहा। इसके बाद हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को कई यातनाएं दीं,उसे मारने का प्रयत्न किया लेकिन भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और उसने विष्णु जी की उपासना जारी रखी। क्रोधित हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका जिसे भगवान ने वरदान स्वरूप एक चुनरी दी थी जिसको पहनकर व आग में नहीं भस्म हो सकती थी की गोद में प्रहलाद को बैठाकर हवन कुंड में बैठाया था। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह चुनरी उड़कर भक्त प्रहलाद के ऊपर आ गयी और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई।
पौराणिक कथाओं की बात करें तो यह भी निष्कर्ष निकल कर आता है कि होलिका ने अपने भाई हिरण्यकशिपु से प्रहलाद को मारने से मना किया था लेकिन उसके बावजूद वह नहीं माना, अंततः होलिका को अपने भाई की आज्ञा माननी पड़ी। वहीं जब प्रहलाद होलिका की गोद मे बैठा था तो होलिका ने वह चुनरी जो वरदान स्वरूप उसे मिली थी उसने उसे प्रहलाद के ऊपर डालकर उसकी रक्षा की और खुद भस्म हो गयी। तब से होलिका दहन की शुरुआत हुई। इसी लिए जब होलिका दहन होता है तब भक्त प्रहलाद से पहले होलिका माता की पूजा भक्त करते हैं।
बहन होलिका की मौत के बाद हिरण्यकशिपु और क्रोधित हो जाता है। वह पुत्र प्रहलाद को मारने के लिए लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल उसे उसमें बांध देता है। इसके बाद वह प्रहलाद से पूछता है कि तुम्हारे आराध्य विष्णु जी कहां है तो वह कहता वह तो कण कण में हैं। जिसके बाद हिरण्यकशिपु तलवार लेकर प्रहलाद का वध करने के लिए तैयार होता है और कहता है कि तुम्हारी अब कोई रक्षा नहीं करेगा। उसी समय खंभे से भगवान विष्णु नृसिंह के रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु को महल के प्रवेश द्वार की चौखट पर, जो न घर के बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, आधा मनुष्य, आधा पशु जो न नर था न पशु ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज नाखूनों से जो न अस्त्र थे न शस्त्र से मार देते हैं। भगवान प्रह्लाद के साथ ही संपूर्ण सृष्टि को दैत्य हिरण्यकशिपु से मुक्ति दिलाते हैं।